Wednesday, February 2, 2011

डाकडिब्बे की चाबी !

सुबह हुई तोह पता चला,
घर में मचा था बवाल
" कहाँ गयी डाकडिब्बे की चाबी?"
था पिताजी का सवाल|

यहाँ से सब निकाला,
खखल डाली अलमारी,
चीज़े करदी उथल-पुथल,
ढूंड ली जगाएं सारी!

क्यों है इतनी उत्सुकता?
मेरे मन में जगा सवाल....
क्यों आज सफाई प्रेमी पिताजी,
कर रहे हैं घर का हाल बेहाल?!

माँ से पूछा मैंने,
तोह लगी वह कहेने....

" कल गए थे नीचे घूमने,
ख़त देखा पेटी में,
इतने दिनों बाद चिट्ठी आई है,
यही सोच कर इतनी उथल-पुथल मचाई है!"

मेरा हसने का जी किया,
लेकिन केवल म्स्कुरायी,
लेकिन फिर अपने मन में,
उत्सुकता पाई!!

मैं चुप-चाप गयी पिताजी के पास,
पूछा "किसने लिखा है यह ख़त?"
गुस्से में बोले,  "मेरे पास नहीं है चाबी,
मुझसे पूछो मत!"

फिर दो दिन बीत गए,
पिताजी ने पहनी कमीज़ गुलाबी,
और अभी तक न मिली थी,
डाकडिब्बे की चाबी!

वह नीचे गए,
उनकी शकल थी लटकी,
और अभी भी नज़रें थी,
उस डाकडिब्बे पर अटकी!

फिर बजा उनका फ़ोन,
तोह जेब में डाला हाथ,
और लो!
डाकडिब्बे की चाबी निकली मोबाइल के साथ!!!

पिताजी हुए बड़े खुश,
और चाबी से डाकडिब्बा खोल डाला!
और बड़ी उत्सुकता से,
उन्होंने वह ख़त निकाला!

ख़ुशी से खोला ख़त उन्होंने,
लेकिन गुस्से से आँखें हो गयी लाल....
क्यूंकि वोह ख़त था लाइफ इन्सौरांस का विज्ञापन,
जिसे लेने का न उठा सवाल!!!


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